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पूर्णिया का इतिहास

☘️☘️☘️कहते हैं कौशिकी और अरण्य के युगल मिलन से पूर्णिया का स्वरूप गढ़ा गया। आर्य काल में यह छेत्र कौशिकी कच्छ के नाम से जाना जाता था।महर्षि विश्वामित्र की पावन-पवित्र कौशिकी जिसके तट पर वे तपस्या किया करते थे वही वर्तमान कोशी है।☘️☘️

☘️☘️एल.एस. एस. ओमैली (आई.सी.एस. संपादित पूर्णिया गजेटियर ) का मत है कि पूर्णिया पुरैनी के बिगड़े हुए स्वरूप से लिया गया है । पुरैनी क्षत्रिय भाषा मे कमल के फूल को कहते है जो इस क्षेत्र के इर्द गिर्द बरबस नजर आते है।☘️☘️

☘️☘️भारत मे प्राप्त 160 प्रजाति के फूलों में करीब आधी इसी पूर्णिया की भूमि से प्राप्त है।मौलाना यूसुफ रशीदी अहसन उल तवारीख पूर्णिया के इतिहासकार का कथन है पूर्णिया शहर को राजा पूरण ने अपनी राजधानी बनाया था, इसलिए अपने नाम पर इसका नाम पूर्णिया रखा।राजधानी होने के कारण इस क्षेत्र का नाम ही पूर्णिया हो गया।☘️☘️

☘️☘️इन तथ्यों के आधार पर यह कहना असंगत नहीं होगा कि पूर्णिया नाम आज से लगभग हजार वर्ष पूर्ब भी कुछ विकृत रूप में बरकरार रहा है।☘️☘️

☘️☘️पूर्णिया नाम प्राचीन है।आईने अकबरी के अनुसार,महानंदा के पश्चिम तट का भू-भाग सरकार पुरैनिया के अधीन था।☘️☘️

☘️☘️पुण्ड्र का राज्य पुंड्रवर्धन ही पूर्णिया का प्राचीन रूप है ।सन 640ईस्वी में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इस क्षेत्र का भ्रमण कर यहाँ का संछिप्त इतिहास लिपिबद्ध किया जिसमें उन्होंने इस क्षेत्र पुंड्रवर्धन कहकर उल्लेख किया है।☘️☘️

☘️☘️जिले का पश्चिमी भाग प्राचीन अंग देश का ही एक हिस्सा था,जिसकी मूल भूमि गंगा के दक्षिण थी और विद्वानों के अनुसार राजधानी चम्पा (भागलपुर)थी और उत्तर में किरातों का वास था जो आज भी है।पूर्बी पूर्णिया के निवासी पुण्ड्र नाम से जाने जाते थे।पुण्ड्रो की चर्चा ऐतरेय ब्राह्मण संहिता में पाई जाती है।जिसका लेखनकाल इतिहासकारों ने 1000 ईसा पूर्ब रखा है।अनुश्रुतियों के अनुसार आनवबंश में तितिक्षु हुए,जिनके वंश में प्रतापी राजा बलि हुए।बलि को उनकी पत्नी से महर्षि दीर्घतमा द्वारा नियोग से पाँच पुत्र -अंग,वंग, पुण्ड्र, सुमह और कलिंग प्राप्त हुए।इन पांचों पुत्रों के नाम पर भारत के पांच पूर्बी राज्य गठित हुए।☘️☘️

☘️☘️पुण्ड्रो को ऋषि विशामित्र की संतान कहा गया है। कौशिकी का प्रदेश विश्वामित्र की तपोभूमि थी,जहाँ उन्होंने ब्राह्मणत्व प्राप्त किया था।कौशिकी तो उनकी सहोदरा थी,जो शापदोष के कारण नदी में परिणत हुई।☘️☘️☘️☘️

☘️☘️मानव धर्मशास्त्र के प्रणेता मनु ने जिनका काल 200ईस्वी पूर्ब माना जाता है,इन्हें आर्य स्वीकार किया है और कहा है कि पुण्ड्र ,किरात,खश आदि जातियाँ छत्रिय है,जो दूर देश में रहने के कारण ‘क्रियाकलाप के लोप होने ‘और ‘ब्राह्मणों के अदर्शन’ हेतु ‘बृषलत्व’ अर्थात शूद्रत्व प्राप्त हो गए है।☘️☘️

☘️☘️पूर्णिया का सारा इलाका पूरब में महानंदा नदी तक कौशिकी -कच्छ कहलाता था तथा पूरब इलाका पुण्ड्र(पूर्णिया ,मालदा,दिनाजपुर, राजशाही का छेत्र)इन दोनों राज्यों के नृपति क्रमशः महोजा ओर बासुदेव प्रबल पराक्रमी थे।☘️☘️

☘️☘️पूर्णिया का ठाकुरगंज क्षेत्र वर्तमान किसनगंज जिला और अन्य जगहें जैसे दही भात जिसे आज टेढ़ागाछ कहते हैं, किरातों के प्रभाव में थे,और ऐसा माना जाता है कि इन स्थानों में महाभारत कालीन अवशेष है।☘️☘️

☘️☘️अज्ञातवास जाने के क्रम में पाण्डव पूर्णिया नवरतन हाता ,रामबाग एवं पूर्णिया सिटी के रास्ते गए थे।नवरतन हाता स्थित एक विशाल वृक्ष पर अर्जुन ने अपना गांडीव टांगा था, ताकि पांडवों की कोई पहचान ना रहे ।बाद में इसे लोग अर्जुन वृक्ष के नाम से सम्बंधित करने लगे। यह वृक्ष वर्तमान में पूर्णिया के प्राथमिक शिक्षक संघ के निकट है।☘️☘️

☘️☘️विराट का क्षेत्र किसनगंज का उत्तरी और पचिमी भाग तथा नेपाल की तराई का आधे से अधिक भाग विराट के राज्य में था।☘️☘️

☘️☘️बिम्बिसार ने जब अंग जीत लिया तो पुण्ड्रवर्धनऔर कौशिकी कच्छ स्वतः उसके अधीन हो गए। इसके बाद पूर्णिया की राजनैतिक स्थिति अवरोहपूर्ण हो गई। सातवीं गौड़ के शक्तिशाली शासक शशांक शासनाधीन आ गया। उसका शासन क्षेत्र पूरे बिहार तथा मध्य बंगाल तक विस्तृत है। हर्षवर्धन ने 620 ईस्वी में उसे हराया और पूर्णिया तक राजशाही जिले उसके नियंत्रण में आ गये। 660 में पूर्णिया आदित्य सेन के मगध साम्राज्य का अंग बन गया। इसके बाद पूर्णिया पर चन्द्रवंश का शासन कायम हुआ यह अवधि अव्यवस्था की थी।इनकी अव्यवस्था को पालों ने समाप्त किया और पूर्णिया सहित पूरे बिहार पर उन्हीं का शासन स्थापित हुआ। बीच में कुछ दिनों के लिए प्रतिहारों ने शासन स्थापित कर लिया, किन्तु शीघ्र ही पाल शासकों ने पुनः अपनी सत्ता स्थापित कर ली।☘️☘️

☘️☘️बख्तियार खिलजी ने जब बंगाल और बिहार के बड़े क्षेत्रों पर अधिकार स्थापित कर लखनौती मे अपनी राजधानी बनाई तो यहीं से सैनिक अभियान चलाया।हिशामुद्दीन एवज ने पूर्णिया सहित कुछ अन्य क्षेत्रों पर अधिकार कायम किया। इसके बाद सत्रहवीं शताब्दी तक के पूर्णिया के इतिहास की जानकारी भी नहीं मिल पाती है।☘️☘️

☘️☘️नवाब अस्फनदर खाँ1680 ईस्वी में पूर्णिया का फौजदार नियुक्त हुआ जिनकी हुकूमत 12 वर्ष तक चली।☘️☘️

☘️☘️सन् 1765ईस्वी में अंग्रेजों को दीवानी अधिकार मिलने के बाद वह पूर्णिया का पहला फौजदार नियुक्त हुआ । 1767 में उसके जगह मुहम्मद रजीउद्दीन खां को फौजदार नियुक्त किया गया। पूर्णिया का अन्तिम फौजदार मो0 अली खाँ जो 1770इस्वी तक अपने पद पर रहा।☘️☘️

☘️☘️1770 से1793 का काल पूर्णिया में ब्रिटिश शासन की स्थापना का काल था। अंग्रेजों को समस्त बंगाल,बिहार,उड़ीसा की दीवानी का अधिकार 1765 मे ही मिल गया था,किन्तु अधीक्षण की पद्धति लागू कर 1769 से वे इस उत्तरदायित्व को स्वीकार करने को उद्दत हुए। प्रत्येक जिले के लिये अंग्रेज सुपरवाइजर अथवा अधिक्षक की नियुक्ति की गई। 1770 में पूर्णिया में भयंकर दुर्भिक्ष आया ।1791 में पूर्णिया विनाशक महामारी का शिकार हुआ।☘️☘️

☘️☘️1793 में स्थायी व्यवस्था की गयी।पूर्णिया मे जिन जमींदारों के संग स्थायी व्यवस्था की गयी वे थे-पूर्णिया की रानी इन्द्रावती, धर्मपुर के राजा माधव सिंह, सुरजापुर के सैय्यद फखरुद्दीन हुसैन और तीराखारदाह के दुलार सिंह। 1850ईस्वी मे मुर्शिदाबाद के सेठ प्रताप सिंह ने हवेली पूर्णिया की जमींदारी खरीद ली,जिसे बाद मे पूर्णिया के सेठ धर्मचंद ने खरीदी। उनके पुत्र पृथ्वीचंद लाल ने प्रयाप्त विस्तार किया।पृथ्वीचंद को गुलाबबाग मेला लगाने का श्रेय जाता है।☘️☘️

☘️☘️सूरजपुर जमींदारी तत्कालीन किसनगंज अनुमंडल(आज का जिला मे पड़ता है। और सैय्यद फखरुद्दीन हुसैन के साथ अंग्रेजों ने स्थायी बन्दोबस्त किया था। यह जमींदारी उसके पुत्रों दीदार हुसैन और अकबर हुसैन में क्रमशः खगड़ा और किसनगंज शाखाओं के नाम से बंट गई।किसनगंज शाखा अंततोगत्वा धर्मचंद लाल और उनके पुत्र पृथ्वीचंद लाल द्वारा खरीद ली गयी।उनकी जमींदारी नजरगंज के नाम से प्रसिद्ध हुई।☘️☘️

☘️☘️तीराखारदह जमींदारी बनैली राज राजा दुलार सिंह के साथ स्थायी ब्यबस्था की गई थी।उनके दो पुत्र थे-राजा बेदानंद सिंह और कुमार रुद्रानंद सिंह ।वेदानंद सिंह के पुत्र लीलानंद सिंह ने अपनी राजधानी रामनगर में स्थापित की।लीलानंद सिंह के तीन पुत्रों में पद्मानंद सिंह रामनगर में रहे और शेष दो चंपानगर में बाद में पूरी जमींदारी का प्रबंधन उन्हीं के दोनों पुत्रों कलानंद सिंह और कृत्यानंद के हाथों आ गया।कलानंद सिंह के पुत्रों रामानंद सिंह और कृष्णानंद सिंह ने क्रमशः गढ़बनैली और भागलपुर जिलान्तर्गत कृष्णगढ़ की स्थापना की।रुद्रानंद सिंह के उत्तराधिकारियों ने श्रीनगर को अपनी राजधानी बनाई।☘️☘️

☘️☘️☘️पूर्णिया का अंतिम फौजदार नबाब मोहम्मद अली खां थे। उनके बेटे अहमद अली खां और पोते आगा सैफुल्लाह खां पूर्णिया सिटी के जमींदार हुए।सैफुल्लाह खाँ के वंशजों में बीबी कामरुन्निसा और सैय्यद असद रजा का नाम पूर्णिया के नबाब खानदान के उत्तराधिकारी के रूप में जाना जाता है।इस घराने के द्वारा वनवाया गया छः गूम्बदों वाला मस्जिद स्थापत्य विलक्षणता के दृष्टिकोण से आज भी दर्शनीय है।पूर्णिया रेलवे स्टेशन का निर्माण सैय्यद असद रजा द्वारा प्रदत्त भूमि पर हुआ है।☘️☘️☘️

☘️☘️☘️सत्रहवीं सदी के उत्तरार्ध में पूर्णिया में सौरिया(सुरगण)नामक राजवंश की स्थापना हुई थी,जो पुरैनिया राज के नाम से प्रसिद्ध था। समरू राय के बाद क्रमशः कृष्णदेव, विश्वनाथ, वीरनारायण, नरनारायण, रामचन्द्र नारायण और इन्द्रनारायण ने राज किया।राजा कृष्णदेवराय के उत्तराधिकारियों का राज्य पहसरा शाखा कहलाया और कृष्णदेव के भाई राजा भागीरथी के उत्तराधिकारी सौरिया शाखा के नाम से प्रसिद्ध हुए।तत्कालीन पूर्णिया के पहसरा नामक स्थान मे राजा कृष्णदेव का मुख्यालय था और यह राज्य पूर्णिया फौजदार के अधीन था।इस वंश के अंतिम राजा इंद्रनारायण राय का मुख्यालय कसवा के निकट मोहिनी मे था।इन्द्रनारायण राय निःसन्तान थे फलतः 1784ईस्वी मे उनकी मृत्यु के बाद पत्नी रानी इन्द्रावती ने शासन की बागडोर संभाली।उस समय वह पूर्णिया की सबसे बड़ी जमींदारी थी।उनकी जमींदारी के अन्तर्गत, सुल्तानपुर,श्रीपुर ,नाथपुर, फतेहपुर, सिंधिया,कटिहार,गांगरी हवेली और आलमनगर परगने थे।1803 में उनकी मौत के बाद उत्तराधिकारी को लेकर विवाद छिड़ा। मुकदमे की चक्कर में इस्टेट की अधिकार संपत्ति मुकदमेवाजी में समाप्त हो गयी। मरने से पूर्ब वे अपने ममेरे भाई भैयाजी को उत्तराधिकारी बनाई थी,लेकिन सौरिया शाखा के उत्तराधिकारी के द्वारा मामला मुकदमा के कारण इनकी अधिकांश सम्पति मुर्शिदाबाद के बाबू प्रताप सिंह और पूर्णिया सिटी के नकछेद लाल के नाम हस्तांतरित हो गया था। 1850 में भैयाजी की मृत्यु के उपरांत उनके पुत्र विजय गोविंद सिंह अपने मुख्यालय फरकिया गुणमति को बनाया।इसी के बंशज के एक अन्य शाखा के महेंद्र नारायण राय ने कटिहार में अपनी राजधानी बनाई जहाँ 1854 ईस्वी में भब्य महल का निर्माण करवाया जो डच शैली की थी।महेंद्र नारायण राय ने महल के सामने ही एक काली मंदिर का निर्माण करवाया और कहा जाता है कि शुबह सबेरे उठकर महल की खिड़की से ही माँ काली का दर्शन किया करते थे।और उनकी पत्नी महल के छत से गंगा का दर्शन किया करती थी।महेंद्र नारायण राय निःसंतान थे और अपनी पत्नी के भतीजे दीनानाथ मिश्र को गोद लिया था।इस प्रकार यह वंश दीनानाथ मिश्र से आगे बढ़ा। उमानाथ मिश्र वंश के प्रमुख हुए। कटिहार महेश्वरी एकेडमी स्कूल ,उमा देवी मिश्रा बालिका विद्यालय, बड़ी बाजार ,यज्ञशाला औए बड़ी दुर्गास्थान की भू सम्पत्ति उन्हीं की देन है।☘️☘️

🌻🌻🌻धरहरा का मनिकथंब या प्रह्लाद स्तम्भ🌻🌻🌻

☘️☘️🌻🌻पूर्णिया जिले में धरहरा का मनिकथम्भ तथा जलालगढ़ का किला दो प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल है।☘️☘️🌻🌻

☘️☘️पूर्णिया जिले के बनमनखी प्रखंड में स्थित है प्रह्लाद स्तम्भ । यह प्रह्लाद नगर में अवस्थित है इसे सिकलीगढ़ धरहरा के नाम से भी जाना जाता है जो बनमनखी प्रखंड से लगभग 3 कि.मी. की दूरी पर है।यहाँ के लोगों की मान्यता है कि यहाँ जो स्थित स्तम्भ है यहीं भगवान नरसिंह अवतरित हुए थे और भक्त प्रह्लाद की रक्षा की थी।स्तम्भ फटा हुआ है । यहाँ के पुजारी का कहना है कि यह स्तम्भ धीरे धीरे फैल रहा है।पहले स्तम्भ में होल था जो अब भर चुका है।☘️☘️

☘️☘️यहाँ के किसानों को एक बड़ा सा मिट्टी का बर्तन मिला है जो बहुत ही प्राचीन प्रतीत होती है।एक कुआँ भी है जो 20 फीट गहरी है ।इस जगह को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि यह स्थल पुरातात्विक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।☘️☘️

☘️☘️पहले यहाँ मंदिर नहीं था सिर्फ यह स्तम्भ ही था।अनुमंडल पदाधिकारी केशव सिंह के प्रयासों से इस मंदिर का निर्माण कार्य शुरू कराया गया।☘️☘️

☘️☘️प्रति वर्ष होली के समय यहाँ मेला लगता है और होलिका दहन किया जाता है और होलिका दहन किया जाता है। धूमधाम से होली मनाई जाती है।☘️☘️

☘️☘️पूर्णियां शहर से 13 मील उत्तर जलालगढ़ रेलवे के निकट कोशी नदी के पुरानी धार के बीच बने द्वीप पर जलालगढ़ का किला बना ,जो 1911 ईस्वी के आसपास तक ठीकठाक था। इस विशाल चतुष्कोणीय ढाँचा की प्राचीरें बहुत ही मजबूत थी। मिस्टर ओ0 मेली के अनुसार इसे पूर्णिया की उत्तरी सीमा पर नेपाल के संभावित आक्रमणों से रक्षा के लिए मुस्लिम शासक सैय्यद जलालुद्दीन ने (1605- 1627) बनवाया था। इसे पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है।☘️☘️

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